शनिवार, 13 अप्रैल 2013

लिखता था मैं...

लिखता था मैं 
लिखना शौक ही नहीं,
जरुरत थी मेरी 
या यों कहें
लिखना ही सबकुछ था मेरा 
पर अब लिखना तो दूर 
लिखने की सोंच भी नहीं पाता 
ऐसा नहीं है कि लिख नहीं सकता 
लिख सकता हूँ 
कलम भी है हाथों में 
और पन्ने भी फरफरा रहे है तकिये के बगल में मेरे 
शब्दें भी चारों तरफ नाच रहे है
पर मैं उन्हें किसी ले में पिरोना नहीं चाहता 
नहीं चाहता कि मैं 
उन्हें नहीं समेटना चाहता अपने पन्नों पर 
क्योंकि लिखना न अब जरुरत है मेरी 
और न ही ये अब शौक है 
लिखना सिर्फ एक याद है अब मेरे लिये…. 

===== अभिषेक प्रसाद

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